THE HOOK DESK : जेब में 5 हजार रुपए और कई छोटे-मोटे कर्ज। लक्ष्मण दास मित्तल की बस यही पूंजी थी। जिन्दगी अस्त-व्यस्त थी और उनका परिवार दिवालिया हो गया था। कितना अजीब लगता है न जब किसी शख्स के बारे में हम ऐसी कहानियां सुनके हैं और बाद में वही शख्स एक अरबपचि बन जाता है। ऐसी ही कहानी है भारत के 86 साल के लक्ष्मण दास मित्तल की जो देश के 52वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। लक्ष्मण दास 9,200 करोड़ रुपए नेटवर्थ वाले सोनालिका ग्रुप के चेयरमैन भी हैं।अमीर बनने की चाहत किसे नहीं होती। इस उपभोक्तावादी संसार में हर कोई ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित कर लेना चाहता है पर अक्सर देखा जाता है कि जो पहले से ही अमीर है वो तो नए-नए उद्योग-धंधों के जरिए पैसे बटोरता चला जाता है जबकि आम आदमी रोटी-दाल के जुगाड़ में ही जीवन खपा डालता है। एक छोटे से गांव में जन्म लेने वाले लक्ष्मण दास मित्तल के बारे में कोई यह नहीं जानता था कि आगे चलकर मित्तल उद्योगपतियों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज कराएंगे। मित्तल एक साधारण परिवार में पैदा हुए थे और घर की स्थिति भी अच्छी नहीं थी। मित्तल शुरु से ही पढ़ने लिखने में तेज थे और हमेशा स्कूल में अव्वल थे।1962 में पंजाब के होशियारपुर जिले का एक नौजवान अपने बीमा क्षेत्र का करियर छोड़कर जिले के लुहारों की मदद से थ्रेसर बनाने लगा। पर उस नौजवान का यह साहसिक कदम उसके लिए बेहद भारी साबित हुआ। एक साल बाद उसे खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ा। पर इससे उसके हौसले पर कोई फर्क नहीं पड़ा। 1969 में वह फिर लौटा एक बेहतर बिजनेस आईडिया और दृढ़ निश्चय के साथ। आज 80 साल के लक्ष्मण दास मित्तल को कोई दिवालिया के रूप में नहीं बल्कि भारत की तीसरी बड़ी ट्रेक्टर निर्माता कंपनी सोनालिका ग्रुप के मालिक के तौर पर में जानता है। यह ग्रुप भारत में तीसरे नंबर का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता है।मित्तल के पिता मंडी में डीलर का काम करते थे। और उसी से जो आमदनी होती थी उसी से घर का खर्च चलता था। पिता एजुकेशन का महत्व समझते थे इसलिए उन्होंने हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। मित्तल ने वो दौर भी बहुत ही नजदीक से देखा है जब उनके पिता का व्यापार में घाटा हो गया और उनके पिता महज कुछ पैसों के लिए रो रहे थे जो उनके लिए बहुत ही दुख की बात थी।मित्तल ने उसी दिन फैसला किया कि वो दुनिया की सारी खुशियां अपने मां-बाप के कदमों में लाकर रख देंगे। मित्तल ने अपनें करियर की शुरुआत एक एलआईसी एजेंट के तौर पर की थी। मित्तल ने रात दिन कड़ी मेहनत और लगन के साथ काम करते हुए अपने परिवार की आर्थिक रूप से थोड़ी मदद करने में सक्षम होने लगे।फिर आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए मित्तल ने मारुति उद्योग में डीलरशिप के लिए आवेदन किया। लेकिन उन्हें डीलरशिप नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में कार्यरत अपने एक मित्र की मदद ली। मित्र ने थ्रेशर में खामी खोजी। फिर सुधार करके थ्रेशर बनाए गए। अबकी बार डिजाइन सही थी। मशीनें खूब लोकप्रिय हुईं। 10 साल के भीतर ही सोनालिका थ्रेशर की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन चुकी थी। थ्रेशर की कामयाबी के बाद लोगों का भरोसा बढ़ गया। किसान मित्तल से ट्रैक्टर बनाने को कहने लगे। उन्हें लगता था कि मित्तल ट्रैक्टर बनाएंगे, तो वे भी ऊंची गुणवत्ता के होंगे। मित्तल परिवार ने 1994 में शुरुआत की। आज सोनालिका ग्रुप ग्रुप की नेटवर्थ 9,200 करोड़ रुपए के बराबर है। सोनालिका ग्रुप 74 देशों में ट्रैक्टर एक्सपोर्ट करता है। पांच देशों में इसके प्लांट हैं। ग्रुप में 7 हजार कर्मचारी है। साहसी मित्तल ने अपने दम पर एक बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया। आज उनका कारोबार 70 देशों में फैला है और वह दुनिया के 73वें सबसे बड़े रईस कहे जाते हैं।