आहायाचायचेासु सुखाथॉ प्रेत्म चेह च। ऩयॊ प्रमत्नभानतष्टेद् फुविभान हहत सेवते।। 'इस सॊसाय भें सुखी जीवन की इच्छा यखने वारे फुविभान व्मक्ति आहाय-ववहाय, आचाय औय चेाएॉ हहतकायक यखने का प्रमत्न कयें।' उधचत आहाय, ननद्रा औय ब्रचमव – मे तीनों वात, वऩत्त औय कप दोषों को सभान यखते हुए शयीय के स्वस्थ व ननयोग फनामे यखते हैं, इसीलरए इन तीनों को उऩस्तम्ब भाना गमा है। अत् स्वस्थता के लरए इन तीनों का ऩारन अननवामव है। मह एक सुखद ऩहरू है कक सभग्र ववश्व भें आज बायत के आमुवेद के प्रनत श्रिा, ननष्टा व स्जऻासा फढ़ यही है क्मोंकक श्रेष्ट जीवन-ऩिनत का जो ऻान आमुवेद ने इस ववश्व को हदमा है, वह अहतीम है। अन्म धचककत्सा ऩिनतमाॉ केवर योग तक ही सीलभत हैं रेककन आमुवेद ने जीवन के सबी ऩहरुओॊ को छुआ है। धभव, आत्भा, भन, शयीय, कभव इत्माहद सबी आमुवेद के ऺेत्रान्तगवत आते हैं। आमुवेद भें ननहदव लसिान्तों का ऩारन कयके हभ योगों से फच सकते हैं, कपय बी महद योगग्रस्त हो जावें तो मथासॊबव एरोऩैधथक दवाइमों का प्रमोग न कयें क्मोंकक मे योग को दूय कयके 'साइड इपेक्ट' के रूऩ भें अन्म योगों का कायण फनती हैं। श्री मोग वेदान्त सेवा सलभनत ने प्रस्तुत ऩुस्तक भें आमुवेद के ववलबन्न अनुबूत नुस्खों का सॊकरन कय ऐसी जानकायी देने का प्रमास ककमा है स्जससे आऩ घय फैठे ही ववलबन्न योगों का प्राथलभक उऩचाय कय सकें। आशा है आऩ इसका बयऩूय राब रेंगे।